छोटे छोटे सवाल –२
"रामस्वरूप पाठक नाम है, के.जी. कॉलेज में हिन्दी में सेकंड डिवीजन में एम.ए. किया है, हल्दौर से आया हूँ।" मेरा नाम मुरारीमोहन माथुर है, मैंने भी हिन्दी में एम.ए.किया है, मैं झालू का रहनेवाला हूँ। और भी चार उम्मीदवारों ने खड़े हो-होकर अपना परिचय दिया। सबने हिन्दी में एम.ए. किया था और सब सेकंड डिवीजन में पास हुए थे। ये लोग हिन्दी की लेक्चररशिप के उम्मीदवार थे।
सहसा राजेश्वर ने कहा, "क्यों साहब, क्या एम.ए. हिन्दी में थर्ड डिवीजन नहीं होती ?" असिस्टेंट टीचरी के अधिकांश उम्मीदवार इस बात पर मुस्करा दिए। कोई उत्तर न पाकर असरार ने डेस्क पर आगे झुकते हुए कहा, "एम.ए. की बात तो साहब, ये प्रोफ़ेसर लोग जानें, पर बी.ए. में थर्ड डिवीजन जरूर होती है और मुझे थर्ड डिवीजन में बी.ए. पास करने का फ़ख़्र हासिल है।" इस पर श्रोत्रिय नाम के एक अन्य उम्मीदवार ने भी दूसरे शब्दों में यही बात दोहराई।
फिर जो परिचय का औपचारिक दायरा टूटा और डिवीजनों की बात चली तो मालूम हुआ कि असिस्टेंट टीचरी के दो पदों के लिए आमन्त्रित छह में से पाँच उम्मीदवार थर्ड डिवीजनर हैं और अनट्रेंड भी। राजेश्वर ठाकुर ने तो बी.ए. तीसरे साल सप्लीमेंटरी में पास किया था। पर सर्वसम्मति से सभी उम्मीदवारों ने उसे भी थर्ड डिवीज़नस में ही गिना । फिर एक-दूसरे को प्रशंसा और प्रेम की दृष्टि से देखकर सबने आत्मसन्तोष का अनुभव किया।
तभी अचानक राजेश्वर ने कोनेवाली एक बेंच पर अकेले बैठे हुए सत्यव्रत से उसकी डिवीजन पूछी तो फिर कई चेहरों से सन्तोष का भाव मिट गया और बेसब्री से सब उसकी ओर देखने लगे।